9- SEX WITH JIJU

Sunday, September 27, 2009


प्रेषिका : शमीम बानो कुरेशी

अन्तर्वासना के पाठकगण !

यह मेरी पहली कहानी है, अन्तर्वासना पर कहानी पढ कर मेरी भी इच्छा हुई कि मेरी कई आप बीती में से एक रात का रोचक वर्णन करूँ। चूंकि यह मेरी पहली कहानी है, मेरी भाषा और अन्दाज वास्तविक है।

मेरे दिल में हलचल मचने एक बड़ा कारण यह है कि मेरे घर में आज कल मेरी छोटी मौसी और मौसा जी आये हुए हैं। मैं रात को रोज़ उनकी चुदाई देखती हूँ, और मजा लेती हूँ। पर हां, उसके एवज में मुझे हाथ से अपनी प्यास बुझानी पड़ती है। मेरा घर पुराना और साधारण सा है, अब्बा एक परचूनी की दुकान चलाते हैं, भाई जान उनकी मदद करते हैं।

मेरे घर पर कमरों के बीच में दरवाजा नहीं है, बस एक परदा रहता है। रात अधिक बीत जाने के बाद यह निश्चित हो जाने के बाद कि सभी सो गये होंगे तभी चुदाई का कार्यक्रम चालू किया जाता था। अभी तो मौसा और मौसी रात को छ्त पर चले जाते थे, और वहाँ पर चुदाई किया करते थे। मेरे लिये भी यह और सरल था कि मैं चुपके से ऊपर जा कर मजे देखती। मुझे ऊपर आकर उन्हें झांक कर देखना पड़ता था। यही मुझसे बस गलती हो गई। मेरे पड़ोस के लड़के शफ़ीक ने मुझे देखते हुए पकड़ लिया और मौके का पूरा फ़ायदा उठा कर मुझे उसने चोद दिया।

वैसे यह कोई नई बात नहीं थी मेरे लिये। मेरे साथ ऐसा कितनी ही बार हो चुका था और मैं कई बार चुद भी चुकी हूँ, पर अधिकतर मेरी गाण्ड ही मारी है। शायद यहा गाण्ड मारना सभी को अच्छा लगता है। मुझे ठीक से तो याद नहीं पर चुदी तो मैं दस बारह बार ही हूँ, पर मेरी गाण्ड तो लोगों ने पता नहीं कितनी बार बजाई है। अब आप ये तो नहीं सोच रहे हैं कि कोई तवायफ़ या वेश्या हूँ, जी नहीं, बिल्कुल नहीं, मैं एक साधारण सी लड़की हूँ, सुन्दर भी हूँ और सब की चहेती भी हूँ। किसी का भी लण्ड खड़ा होता है तो एक बार तो वो मुझ पर ट्राई करने तो जरूर ही आता है।

यहां कानपुर में हमारी घनी बस्ती में सारे घर आपस में जुड़े हुए हैं और यह तो यहा आम बात है, बस जिसका सिक्का चला वही मजे कर जाता है, सबसे बड़ी बात- कुंवारी को चोद जाओ, कोई कुछ नहीं कहेगा पर शादीशुदा को कोई चोद जाये तो हंगामा हो जाता है। पर हाँ मैं अपना चुनाव खुद करती थी। यहा हर बात में गाली देना तो आम बात थी। यानी यही हमारी बोलचाल की भाषा थी। बिना गाली के तो बात पूरी होती ही नहीं थी। मैं भी इससे अछूती नहीं थी, साधारण सी बातों में भी खूब गालियाँ देने की मेरी भी आदत थी। बात बात पर गन्दी गालियाँ देती थी और गालियाँ देने की इतनी अभ्यस्त हो गई थी कि मुझे लगता ही नहीं था कि मेरे बोल गालियों से भरे हुये हैं।

शफ़ीक ने मुझे हाथ हिलाया। मैंने उसे ऊपर की ओर देखा।

"दीदी, शीऽऽऽ , इधर आओ !" शफ़ीक ने फ़ुसफ़ुसा कर कहा।

"हाय, मैं मर गई, तुम...?" मैं धीरे से दीवार कूद कर उसके पास आ गई।

“आओ जल्दी आओ, मामला चल रहा है”

मुझे ले कर वो दूसरी मन्जिल की छत पर आ गया। ऊपर दीवार के पास से चांदनी रात में सब कुछ ठीक से दिख रहा था।

"दीदी, यहा से देखो, मौसा जी लगता है पोंद के शौकीन है" उसने बताया। देख कर मैं शरमा गई। काफ़ी दिनों से शफ़ीक मेरे पीछे था, मुझे पता था कि अब यह भी मुझे नहीं छोड़ेगा।

"तू रोज़ देखता है क्या?"

"हां, और आपको भी देखता हूँ। भेन-चोद बड़ा मजा आता है ना, वो देखो तो सही !" मौसा जी, अब गाण्ड मार रहे थे। मौसी के बड़े बड़े चूतड़ नजर आ रहे थे। शफ़ीक ने मुझे इशारों से दिखाया। पर मेरा ध्यान तो शफ़ीक पर था कि भेनचोद ये मेरे बारे में क्या सोच रहा होगा, शायद मुझे चोदने की सोच रहा होगा। इतना कुछ हो जाये तो और मेरी जैसी लड़की को कोई छोड़ दे तो मुझे वो चूतिया ही लगेगा।

इतना सब देखने से मेरा मन भी मचल उठा था और मैं ऊपर उसके पास आई ही चुदने के लिये थी। मौसा जी कुत्ते की तरह मौसी की गाण्ड चोद रहे थे। मेरी चूत भी गीली हो उठी। इतने में शफ़ीक ने उत्तेजित हो कर मेरी गाण्ड की गोलाई पर हाथ फ़ेर दिया। मेरे तन में झुरझुरी छूट गई। मैंने उसे सीधे देखा, शायद कोई इशारा करे, वो चूतिया तो नहीं था, उसने मेरी तरफ़ देखा और और एक गोलाई में धीरे से हाथ मार दिया। मुझे यकीन हो गया कि अब ये मेरी मारेगा जरूर।

मैंने हंस कर कहा,“धीरे मार, चपटी हो जायेगी, भेनचोद तू भी मजा ले रहा है?”

"हां आपा, कितना मजा आ रहा है ना !" शफ़ीक अब बार बार मेरे चूतड़ों का जायजा ले रहा था। मुझे मजा आने लगा था। मुझे उसका लण्ड भी खड़ा हुआ नजर आने लगा था। यानि कि मैं चुदूंगी तो जरूर ही अब, लौड़ा भी उफ़ान पर आ रहा था।

मैंने उसे और बढ़ावा देने के लिये उससे चिपक सी गई, और अपनी बड़ी बड़ी आंखे उठा कर उसे देखा और कहा,"देख किसी को कहना नहीं कि अपन ने ये सब देखा है।" मैंने उसे धीरे से कहा।

"अरे ये कोई कहता है क्या? तेरे पोन्द तो मस्त है री !" मेरे चूतड़ों को सहलाते हुए बोला।

"और सुन तू जो कर रहा है वो भी मत बताना !" मैंने झिझकते हुए कहा।

उसने यह सुनते ही मेरी गाण्ड दबा डाली और मसलने लगा। मुझे मस्ती आने लगी।

"बानो, अपन भी ऐसा करें?" मौसा मौसी को चोदते देख कर उसने मेरे शरीर पर लौड़ा दबाते हुए कहा।

“क्या करें...?” मैंने जान कर उसके मुख से कहलवाया।

“तुम पोन्द मराओगी ?” मेरे चूंचक जोर से दबा दिये।

"पर बताना नहीं किसी को कि मैंने पोन्द मराई है।" मेरी चुदवाने की इच्छा बलवती होने लगी। आखिर इतने दिनो से मौसा मौसी की चुदाई देख रही थी और बहुत दिनों से मुझे किसी ने चोदा भी नहीं था। सो मैंने अपने आप को उसके हवाले कर दिया। मेरा अंग अंग वासना से भर रहा था। फिर उसका कड़क और मोटा लण्ड, लम्बा तो नहीं था, हाँ, मुझे लगा कि साढ़े पांच इन्च का मूसल तो होगा ही। मुझे कड़क लण्ड से चुदाई की बहुत इच्छा हो रही थी। चूत में से पानी चू पड़ा था। मौसा जी का कार्यक्रम समाप्त हो चुका था, पर हमारा कार्यक्रम परवान चढ़ रहा था।

मैंने शफ़ीक का लण्ड पकड़ लिया। हाय, एकदम कड़क, और प्यासा लग रहा था। बस उसे घुसा ही डालू चूत मे। पर वो तो मेरी पोन्द मारने पर तुला था। पोन्द यानी कि चूतड़ ।

“बानो, तेरे चूंचे बड़े प्यारे हैं, जरा कुर्ता तो ऊपर कर दे, थोड़ा मचका दूँ इन भेन चोदों को !”

“चूचे मचकाना तुझे अच्छा लगता है क्या ?“ मैंने कुर्ता उतारते हुए कहा। मेरी चूंचिया बाहर निकलते ही उछल पड़ी। मेरे चूंचक कड़े हो उठे। उसने मेरी चूंचियो को पकड़ कर दबा दिया।

“पीठ मेरी तरफ़ कर ले, तेरी गाण्ड का मजा लूँ !” उसने मुझे घुमा दिया और लौड़ा मेरी पोंद के बीच दबाने लगा।

“मादर चोद ! क्या मेरी फ़ाड़ डालेगा... धीरे दबा ना !”

“शम्मो जान, पजामा उतार दे अब, ... अब रहा नहीं जाता है, तेरी पोंद मरवा ले अब !” मेरा पजामा उसने ही उतार दिया। चांदनी रात में मेरी गोल गोल गाण्ड चमक उठी। उसका उफ़नता हुआ लण्ड और भूरे रंग का सुपाड़ा चमक उठा। उसके लण्ड की खलड़ी कटी हुई थी। फ़ुफ़कार भरते हुए मेरी पोंद की दरारों के घुस पड़ा। छेद पर लण्ड को ऊपर नीचे रगड़ा, फिर अपनी अंगुली में थूक लगा कर मेरी गाण्ड के छेद पर मल दिया और लौड़े को छेद पर रख कर अन्दर घुसेड़ दिया। थोड़ा सा रगड़ खाता हुआ अन्दर घुस पड़ा। गाण्ड मराने की मैं अभ्यस्त थी, गाण्ड का छेद भी गाण्ड मरवा कर बड़ा हो चुका था, सो मुझे तो मजा आ गया। उसने लण्ड बाहर निकाला तो गाण्ड का छेद खुला ही रह गया। अन्दर मुझे हवा की ठण्डक सी लगी, लेकिन जल्दी ही लण्ड वापिस उसमें समा गया।

"हाय, भाई जान, मोटा लौड़ा है, मजा आ गया !" मैंने अपनी गाण्ड में मूसल जैसा लण्ड फ़न्सा हुआ महसूस किया।

“शम्मो जान, ये तो रगड़ी हुई है, लगता है खूब लौड़े खाये है?” उसके मूसल जैसे लण्ड की धचक अन्दर तक छा गई।

“और क्या ? माजिद चाचा तो जम के मेरी पोंद मारता है, हरामी हर दो तीन दिनों में लण्ड ठोक जाता है, पर मजा तो खूब दे जाता है !” मैं उसके लण्ड का भरपूर मजा ले रही थी।

“साला लण्ड तो यूं जा रहा है जैसे चिकनी चूत में जाता है, गाण्ड का छेद है या कोई आम रास्ता !!” उसकी रफ़्तार बढ़ने लगी। गाण्ड को रगड़ता हुआ लौड़ा फ़काफ़क अन्दर बाहर आ जा रहा था।

“तो चूत ही मार दे ना, इस गाण्ड में क्या रखा है, सारा सुख तो इसी भोसड़े में है।” मुझे चुदने की आस लगी थी।

“अरे हम कनपुरिया हैं ! गाण्ड देख कर ही मन डोलता है, वरना ये मादरचोद लौड़ा खड़ा ही नहीं होता है।” मेरी गाण्ड में मीठा मीठा मजा आ रहा था। पर मुझे अब चूत का असली मजा चाहिये था। मेरी गाण्ड खुली हवा में चुद रही थी। ठण्डी हवा बदन को सहला रही थी और बड़ा मीठा सा अहसास हो रहा था। मेरे चूचों को मल मल कर उसने लाल कर दिये थे। वो हरामी लण्ड पेले ही जा रहा था। मैंने सहूलियत के लिये अपनी टांगे और चौड़ी कर दी ताकि लण्ड की चाल तूफ़ानी हो सके। अचानक उसने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया और आह भरते हुए वीर्य छोड़ दिया।

“भेनचोद सारा माल गाण्ड पर निकाल दिया, अब चल साफ़ कर अपनी बनियान से !” मेरी चूत वासना से बेकाबू हो रही थी और इस मादरचोद साला हरामी ने अपना तो माल ही निकाल दिया। मैंने उससे कहा,“अब चूतिये, मेरी चूत क्या तेरा भाई चोदेगा, रख दिया ना मेरी चूत को कुंवारी, देख कैसी चू रही है, साला हरामी !”

“अरे तू क्या समझ रही है, मैं तुझे छोड़ दूंगा क्या, देख तेरे भोसड़े को कैसे मस्त करता हूँ चोद चोद कर !” उसने मुझे अपनी बाहों में उठा लिया और सीढ़ियों के पास ही पत्थर की एक बैठने की बैन्च बना रखी थी, जिस पर बिस्तर बिछा कर शफ़ीक रात को सोता था, पर लेटा दिया। उसने अपना लण्ड मेरे मुँह में घुसेड़ दिया। मुझे चुदाना था सो उसका लौड़ा चूस चूस कर उसे फिर से खड़ा कर दिया। लण्ड खड़ा होते ही उसने बिस्तर पर से खींच कर किनारे कर लिया और प्यार से मेरी चिकनी चूत में लण्ड घिसने लगा। मैंने उसकी बनियान से ही अपनी चूत का रस पोंछ लिया और अपनी चूत की कलियों को दोनो हाथों से पूरी खोल दी। उसने अपना कड़क लण्ड हाथ से पकड़ा और मेरी चूत में घुसा डाला। मेरे मुख से सिसकारी निकल पड़ी। चिकनाहट मैंने पोंछ दी थी सो लण्ड मेरी चूत को रगड़ता हुआ अन्दर चला गया। सूखी चूत में मजा आ गया। क्या मस्त रगड़ लगी कि मैं स्वर्ग में पहुंच गई।

“अब चोद दे भाई जान, लगा दे पूरा जोर लौड़े का !” उसके धक्के लगाने शुरू कर दिये। मैं मस्त हो उठी और अपनी पोंद नीचे से उछालने लगी। धच्च धच्च करके लौड़ा पूरी ताकत से अन्दर तक उतर रहा था। फिर वो मेरे चूंचे को भी मल मल कर मुझे मस्त किये दे रहे थे। मेरे चूंचक को घुमा घुमा कर मसल रहा था। चूत एक बार फिर लसलसा उठी, पानी छोड़ने लगी थी, अब चूत के पानी के साथ फ़च फ़च की आवाजें आने लगी थी।

“मस्त चूत है बानो जान, मलाई है ये तो, हाय रे मेरी छिनाल, मेरी रंडी, ले ले मेरा पूरा लौड़ा घुसेड़ ले !”

“पेल दे भेनचोद, मार दे मेरी चूत को, दे... दे ... मार लण्ड को, फ़ाड़ दे हरामी को !” मैं तो चुद कर मदहोश हुई जा रही थी। मेरे दिल की भड़ास भी निकली जा रही थी। मेरी चूत उसके लण्ड को अन्दर से लपेट रही थी। मेरी चूत के अन्दर की चमड़ी उसके लण्ड को जैसे चूस रही थी। मेरी चूत अब कसने लगी थी। पानी निकालने ही वाला थी, उसे भी तेज मजा आने लगा था। उसके मुँह से एक से एक नई नई गालियाँ निकल रही थी। मेरी जबान तो गन्दी थी ही सो खूब गालियां दे देकर चूतड़ों की रफ़्तार बढ़ा दी। उसने अब मेरी चूत पर पूरा दबाव डाल दिया और लण्ड को जड़ तक दबा डाला।

“माई री, भाई जान, गई मैं तो, मेरा तो निकला रे, हाय रे... आह्... ऊईऽऽऽऽऽ“ कहते हुए मेरी चूत में लहरें उठ पड़ी और पानी छूट गया। मैं झड़ने लगी। अचानक उसका भी वीर्य निकल पड़ा और चूत के अन्दर ही भरने लगा। हम दोनो एक दूसरे को चूमते जा रहे थे और झड़ते जा रहे थे। कुछ ही देर हम सामान्य हो गये और उसी बिस्तर पर बैठ गये।

“मां की लौड़ी, मस्त है रे तू, देख मेरा लौड़ा आज तो मस्त हो गया, कल भी चुदायेगी ना?”

“अपनी मां को चोदना भोसड़ी के, अब कल किसी और का नम्बर है, अलग अलग लौड़े का मजा लेने में ही सुकून मिलता है, तू भी अलग अलग चूत और गाण्ड ट्राई किया कर !”

“साली रण्डी, तेरी भोसड़ी मारूँ, मुझे चिढ़ाती है, अभी रुक तेरी गाण्ड एक बार फ़ाड़नी पड़ेगी।” और वो मेरे पर लपक उठा। मैं जल्दी से उठी और उसे अपना हाथ का लण्ड बना कर उसे चिढ़ाया और हंसती हुई भाग खड़ी हुई।

“ले ले... मेरी भोसड़ी ले ले... अब कर अपने हाथ से... मुठ मार ले... !” हंसी करते हुए छलांगें मारती हुई सीढ़ियाँ उतर कर मैंने अपनी दीवार फ़ांद ली। वो ऊपर छत से हंसते हुए हाथ हिला रहा था।


पाठकगण, मेरी भाषा मर्यादा से बाहर है, कृपया मुझे माफ़ करें।


shamimbanokanpur@gmail.com





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